संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कब की गई थी
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संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते; मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा अंगीकार की।
एलेनोर रूजवेल्ट और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा सम्पादन (1949)
इस घोषणा से राष्ट्रों को प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और वे इन अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए अग्रसर हुए। राज्यों ने उन्हें अपनी विधि में प्रवर्तनीय अधिकार का दर्जा दिया।
10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की समान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया। इसका पूर्ण पाठ आगे के पृष्ठों में दिया गया है। इस ऐतिहासिक कार्य के बाद ही सभा ने सभी सदस्य देशों से पुनरावेदन किया कि वे इस घोषणा का प्रचार करें और देशों अथवा प्रदेशों की राजनैतिक स्थिति पर आधारित भेदभाव का विचार किये बिना, विशेषतः विद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थाओं में, इसके प्रचार, प्रदर्शन, पठन और व्याख्या का प्रबन्ध करें।
इसी घोषणा का सरकारी पाठ संयुक्त राष्ट्रों की इन पाँच भाषाओं में प्राप्य है: अंग्रेजी, चीनी, फ़्रांसीसी, रूसी और स्पेनी। अनुवाद का जो पाठ यहाँ दिया गया है, वह भारत सरकार द्वारा स्वीकृत है।
**संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly)** ने **मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights – UDHR)** को **10 दिसंबर 1948** को अंगीकार और घोषित किया था।
### **महत्वपूर्ण तथ्य:**
– इसे **फ्रांस की राजधानी पेरिस** में आयोजित महासभा के **संयुक्त राष्ट्र महासभा के 217 A(III) प्रस्ताव** के तहत अपनाया गया।
– यह **पहली बार सभी मनुष्यों के मौलिक अधिकारों** को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने वाला ऐतिहासिक दस्तावेज था।
– यह **30 अनुच्छेदों (Articles)** में विभाजित है, जो स्वतंत्रता, समानता, जीवन के अधिकार, शिक्षा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कार्य के अधिकार आदि को परिभाषित करता है।
– इसे **”अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस”** के रूप में मनाया जाता है।
यह घोषणा **संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत** के रूप में कार्य करती है और आधुनिक मानवाधिकार कानूनों की नींव रखती है।